EN اردو
ग़ुलाम वहम ओ गुमाँ का नहीं यक़ीं का हूँ | शाही शायरी
ghulam wahm o guman ka nahin yaqin ka hun

ग़ज़ल

ग़ुलाम वहम ओ गुमाँ का नहीं यक़ीं का हूँ

सय्यद नसीर शाह

;

ग़ुलाम वहम ओ गुमाँ का नहीं यक़ीं का हूँ
ज़मीन मेरा सितारा है मैं ज़मीं का हूँ

वो और होंगे परस्तार तख़्त वालों के
मैं जाँ-निसार शह-ए-बोरिया-नशीं का हूँ

सवाद-ए-रूह के मंज़र मदीना जैसे हैं
ख़याल आता है मैं भी यहीं कहीं का हूँ

सुनो कि विर्से में बटती हुई अमानत हूँ
मैं हर्फ़-ए-सिद्क़ लब-ए-सादिक़-ओ-अमीं का हूँ

भटक रहा हूँ ख़ला के सराब-ज़ारों में
मैं कोई सज्दा अक़ीदत-भरी जबीं का हूँ