गुलाब-ओ-नाज़ बू है या समन है
तिरी हस्ती मुजस्सम इक चमन है
तुझी से है चमन की ज़ेब-ओ-ज़ीनत
तुझी से सुर्ख़ लाले का बदन है
तुझी से दफ़्तरों में हैं बहारें
तुझी से कुर्सियों में बाँकपन है
तुझी से गर्दनों में ख़म हैं बाक़ी
तुझी से कुंद माथों पर शिकन है
तुझी से रौनक़ें महफ़िल-ब-महफ़िल
तुझी से दिल-कुशा हर अंजुमन है
तुझी पर ख़त्म है शीरीं-कलामी
तुझी से आज ज़िंदा इल्म-ओ-फ़न है
तिरे हाथों में अल-क़िस्सा जहाँ है
तिरे क़दमों पे धरती क्या गगन है
ग़ज़ल
गुलाब-ओ-नाज़ बू है या समन है
ज़ियाउर्रहमान आज़मी