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गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है | शाही शायरी
gul ki aur bulbul ki sohbat ko chaman ka shana hai

ग़ज़ल

गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है
सर्व है जूँ शम्अ तिस पर फ़ाख़्ता परवाना है

रोज़ ओ शब या नौहा या ज़ारी है या आह-ओ-फ़ुग़ाँ
या इलाही ये कोई दिल है कि मातम-ख़ाना है

तन कर उस की तेग़ के आगे हुआ है सर-ब-कफ़
है क़यामत है ग़ज़ब ये दिल है या दीवाना है

बुलबुल-ए-तस्वीर की मानिंद सैद-ए-दिल के तईं
ने हवा उड़ने की ने परवा-ए-आब-ओ-दाना है

एक हालत पर न देखा उस को हम ने एक आन
गह गुल ओ गह बुलबुल ओ गह शम्अ ओ गह परवाना है

मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
साहिब-ए-दिल की बग़ल में दिल इबादत-ख़ाना है

मय-कशो मुझ को तुम्हारी बज़्म की हसरत नहीं
पास मेरे दीदा ओ दिल शीशा ओ पैमाना है

ख़्वाब में थे जब तलक था दिल में दुनिया का ख़याल
खुल गईं आँखें तो देखा हम ने सब अफ़्साना है

शेर उस्तादाना ओ 'हातिम' है बे-बाकाना-वज़्अ
तब्अ आज़ादाना ओ औक़ात दरवेशाना है