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गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार ने | शाही शायरी
gul ka kiya jo chaak gareban bahaar ne

ग़ज़ल

गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार ने

बेदम शाह वारसी

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गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार ने
दस्त-ए-जुनूँ लगे मिरे कपड़े उतारने

छोड़ा कहीं न मुझ को नसीम-ए-बहार ने
कुंज-ए-क़फ़स में भी मुझे आई उभारने

अब दिल की लाज मश्क़-ए-तसव्वुर के हाथ है
शीशा में उस परी को चला है उतारने

साक़ी तो साक़ी बादा-परस्तों के पाँव पर
सज्दे किराए लग़्ज़िश-ए-मस्ताना-वार ने

अब तो नज़र में दौलत-ए-कौनैन हेच है
जब तुझ को पा लिया दिल-ए-उम्मीद-वार ने

चश्म-ए-अदा-शनास को हैरान कर दिया
हुस्न अपना ज़र्रे ज़र्रे में दिखला के यार ने

'बेदम' तुम्हारी आँखें हैं क्या अर्श का चराग़
रौशन किया है नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-यार ने