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गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़ | शाही शायरी
gul hua ye kis ki hasti ka charagh

ग़ज़ल

गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़

ज़हीर देहलवी

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गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़
मुद्दई के घर जला घी का चराग़

ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक
हश्र तक जलता है नेकी का चराग़

वो हक़ीक़त है दिल-ए-अफ़सुर्दा की
टिमटिमाए जैसे सर्दी का चराग़

हम से रौशन है तुम्हारी बज़्म यूँ
नागवारा जैसे गर्मी का चराग़

हो क़नाअ'त तुझ को तो बस है 'ज़हीर'
ख़ाना-आराई को दमड़ी का चराग़