गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़
मुद्दई के घर जला घी का चराग़
ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक
हश्र तक जलता है नेकी का चराग़
वो हक़ीक़त है दिल-ए-अफ़सुर्दा की
टिमटिमाए जैसे सर्दी का चराग़
हम से रौशन है तुम्हारी बज़्म यूँ
नागवारा जैसे गर्मी का चराग़
हो क़नाअ'त तुझ को तो बस है 'ज़हीर'
ख़ाना-आराई को दमड़ी का चराग़
ग़ज़ल
गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़
ज़हीर देहलवी