गुल हो सबा हो शम्अ हो शो'ला हो चाँदनी हो तुम
झलकी थी कोह-ए-तूर पर बस वही रौशनी हो तुम
तुम से वजूद है मिरा हरकत-ए-क़ल्ब हो तुम्ही
क़ुव्वत-ए-ज़ेहन-ओ-दिल हो तुम रूह की ताज़गी हो तुम
वाबस्ता तुम से जो भी हों मुझ को वो ग़म क़ुबूल हैं
बख़्शे सुकूँ जो दाइमी बस इक वही ख़ुशी हो तुम
मेरे तख़य्युलात की पर्वाज़ हो गई बुलंद
जब से नज़र के रास्ते ज़ेहन में आ गई हो तुम
तुम से कहा भी था 'मजीद' इफ़शा न करना राज़-ए-इश्क़
रुस्वा हुए गली गली ये कैसे आदमी हो तुम
ग़ज़ल
गुल हो सबा हो शम्अ हो शो'ला हो चाँदनी हो तुम
मजीद मैमन