गुदाज़-ए-दिल से बातिन का तजल्ली-ज़ार हो जाना
मोहब्बत अस्ल में है रूह का बेदार हो जाना
नवेद-ए-ऐश से ऐ दिल ज़रा हुश्यार हो जाना
किसी ताज़ा मुसीबत के लिए तय्यार हो जाना
वो उन के दिल में शौक़-ए-ख़ुद-नुमाई का ख़याल आना
वो हर शय का तबस्सुम के लिए तय्यार हो जाना
मिज़ाज-ए-हुस्न को अब भी न समझो तो क़यामत है
हमारा और वफ़ा के नाम से बे-ज़ार हो जाना
सहर का इस तरह अंगड़ाई लेना दिल-फ़रेबी से
उधर शाइर के महसूसात का बेदार हो जाना
तवस्सुल से तिरे दिल में भरूँगा क़ुव्वतें बर्क़ी
ज़रा मेरी तरफ़ भी ऐ निगाह-ए-यार हो जाना
वो आराइश में सब क़ुव्वत किसी का सर्फ़ कर देना
तहम्मुल में वो हर कोशिश मिरी बेकार हो जाना
मआज़-अल्लाह अब ये रंग है दुनिया की महफ़िल का
ख़ुदा का नाम लेना और ज़लील ओ ख़्वार हो जाना
रगों से ख़ून सारा ज़हर बन कर फूट निकलेगा
ज़रा ऐ 'जोश' ज़ब्त-ए-शौक़ से हुश्यार हो जाना
ग़ज़ल
गुदाज़-ए-दिल से बातिन का तजल्ली-ज़ार हो जाना
जोश मलीहाबादी