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गोश कर फ़रियाद-ए-आशिक़ जान कर | शाही शायरी
gosh kar fariyaad-e-ashiq jaan kar

ग़ज़ल

गोश कर फ़रियाद-ए-आशिक़ जान कर

शाद लखनवी

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गोश कर फ़रियाद-ए-आशिक़ जान कर
नाला-ए-बुलबुल पे ऐ गुल कान कर

जब बदल कपड़े कफ़न का ध्यान कर
ग़ुस्ल-ए-मय्यत जान जब अश्नान कर

खाल मुझ महव-ए-मिज़ा की जान कर
रख दिया छलनी का सीना छान कर

मिट गए उस की चक़ों को देख कर
बुलबुले उभरे जो सीना तान कर

सख़्त-जाँ वो हूँ जो हो मुझ पर रवाँ
असलहे रह जाएँ लोहा मान कर

आग में अपने मिसाल-ए-शम्अ जल
पर ज़बान से उफ़ न ऐ नादान कर

नश्तर-ए-मिज़्गाँ हो बूँदी की कटार
बूँद-भर पानी पिला एहसान कर

ऐ दुर-ए-यकता जनाब-ए-ख़िज़्र ने
इक मुझे पाया ज़माना छान कर

जिस्म-ज़ार-ए-क़ैस का पूछा जो हाल
रख दिया मकड़ी ने जाला तान कर

ग़म गुनाहों का न खा 'शाद'-ए-हज़ीं
रहमतुल-लिलआलमीं पर ध्यान कर