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गोरख-धंधा हो जाऊँ क्या? | शाही शायरी
gorakh-dhandha ho jaun kya?

ग़ज़ल

गोरख-धंधा हो जाऊँ क्या?

प्रबुद्ध सौरभ

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गोरख-धंधा हो जाऊँ क्या?
मैं भी तुम सा हो जाऊँ क्या?

ग़ज़लों की बस्ती सूनी है
फिर आवारा हो जाऊँ क्या?

सच का गिरवी छुड़वाना है
थोड़ा झूटा हो जाऊँ क्या?

सावन ने आँसू से पूछा
मैं भी खारा हो जाऊँ क्या?

सब उम्मीदें डूब रही हैं
तिनका तिनका हो जाऊँ क्या?

घर दफ़्तर के बटवारे में
आधा आधा हो जाऊँ क्या?

मंडी अब बस उठने को है
थोड़ा सस्ता हो जाऊँ क्या?

सब का हो कर देख चुका हूँ
वापस ख़ुद का हो जाऊँ क्या?