गो याँ न किसी को आए अफ़सोस
हालत तो है अपनी जा-ए-अफ़सोस
देते तो दिया में दिल को लेकिन
चारा नहीं अब सिवाए-अफ़सोस
हूँ कुश्ता मैं वाँ कि जिस जगह में
कोई न किसी पे खाए अफ़सोस
जूँ शम्अ अगर न सर धुनूँ में
क्या काम करूँ वरा-ए-अफ़सोस
चलते हुए अहल-ए-बज़्म ने याँ
छोड़ा है मुझे बराए-अफ़सोस
'क़ाएम' वो अमल कि ब'अद तेरे
इक ख़ल्क़ कहे कि हाए अफ़सोस
ग़ज़ल
गो याँ न किसी को आए अफ़सोस
क़ाएम चाँदपुरी