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गो याँ न किसी को आए अफ़सोस | शाही शायरी
go yan na kisi ko aae afsos

ग़ज़ल

गो याँ न किसी को आए अफ़सोस

क़ाएम चाँदपुरी

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गो याँ न किसी को आए अफ़सोस
हालत तो है अपनी जा-ए-अफ़सोस

देते तो दिया में दिल को लेकिन
चारा नहीं अब सिवाए-अफ़सोस

हूँ कुश्ता मैं वाँ कि जिस जगह में
कोई न किसी पे खाए अफ़सोस

जूँ शम्अ अगर न सर धुनूँ में
क्या काम करूँ वरा-ए-अफ़सोस

चलते हुए अहल-ए-बज़्म ने याँ
छोड़ा है मुझे बराए-अफ़सोस

'क़ाएम' वो अमल कि ब'अद तेरे
इक ख़ल्क़ कहे कि हाए अफ़सोस