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गो मिरा साथ मिरी अपनी नज़र ने न दिया | शाही शायरी
go mera sath meri apni nazar ne na diya

ग़ज़ल

गो मिरा साथ मिरी अपनी नज़र ने न दिया

आज़ाद गुलाटी

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गो मिरा साथ मिरी अपनी नज़र ने न दिया
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ दिल तुझे डरने न दिया

ज़िंदगी कितना तिरी बात का है पास हमें
तू ने जो ज़ख़्म दिया हम ने वो भरने न दिया

एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी
एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया

आप जिस रह-गुज़र-ए-दिल से कभी गुज़रे थे
उस पे ता-उम्र किसी को भी गुज़रने न दिया

हम तो हर हाल सँवारा किए हालात 'आज़ाद'
हम को हालात ने हर-चंद सँवरने न दया