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गो कि मोहताज हैं गदा हैं हम | शाही शायरी
go ki mohtaj hain gada hain hum

ग़ज़ल

गो कि मोहताज हैं गदा हैं हम

जोशिश अज़ीमाबादी

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गो कि मोहताज हैं गदा हैं हम
बे-नियाज़ी के बादशा हैं हम

चश्म-ए-तहक़ीर से हमें मत देख
ख़ाक तो हैं पे तूतिया हैं हम

आह इस उम्र-ए-बे-बक़ा की तरह
रहरव-ए-किश्वर-ए-फ़ना हैं हम

ऐसा बे-बर्ग ओ बे-नवाही कौन
जैसे बे-बर्ग ओ बे-नवा हैं हम

गो हमें तू कभी न याद करे
पर तिरी याद में सदा हैं हम

मुब्तला उस बला में कोई न हो
जिस बला में कि मुब्तला हैं हम

मार कर भी हमीं पे पछताया
बे-वफ़ा तू कि बे-वफ़ा हैं हम

जब्हा-साई से दुश्मनी है जिसे
उसी के दर पे जब्हा-सा हैं हम

कौन रहबर हो इश्क़ की रह में
आप ही अपने रहनुमा हैं हम

हैं तो सूरत-परस्त आईना-दार
नेक मअ'नी से आश्ना हैं हम

और दीवाना कौन है 'जोशिश'
या दिवाना था क़ैस या हैं हम