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गो इस सफ़र में थक के बदन चूर हो गया | शाही शायरी
go is safar mein thak ke badan chur ho gaya

ग़ज़ल

गो इस सफ़र में थक के बदन चूर हो गया

फ़र्रुख़ जाफ़री

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गो इस सफ़र में थक के बदन चूर हो गया
मैं उस की दस्तरस से मगर दूर हो गया

अब उस का नाम ले के पुकारें उसे कहाँ
सहरा भी अब तो ख़ल्क़ से मामूर हो गया

क्यूँ उस ने हाथ खींच लिया मेरे क़त्ल से
क्यूँ मुझ पे रहम खा के वो मग़रूर हो गया

सब अपने अपने घर में नज़र-बंद हो गए
अब शहर पुर-सुकून है मशहूर हो गया

क़िस्मत ने ला के उस को खड़ा कर दिया कहाँ
आईना देखने पे वो मजबूर हो गया