EN اردو
गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी | शाही शायरी
go aaj andhera hai kal hoga charaghan bhi

ग़ज़ल

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी

ज़िया फ़तेहाबादी

;

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी
तख़रीब में शामिल है ता'मीर का सामाँ भी

मज़हर तिरे जल्वों के मामन मिरी वहशत के
कोहसार-ओ-गुलिस्ताँ भी सहरा-ओ-बयाबाँ भी

दम तोड़ती मौजें क्या साहिल का पता देंगी
ठहरी हुई कश्ती है ख़ामोश है तूफ़ाँ भी

मजबूर-ए-ग़म-ए-दुनिया दिल से तो कोई पूछे
एहसास की रग में है ख़ार-ए-ग़म-ए-जानाँ भी

बुग़्ज़-ओ-हसद-ओ-नफ़रत नाकामी-ओ-महरूमी
इंसानों की बस्ती में क्या है कोई इंसाँ भी

दीवाना-ए-उलफ़त को दर से तिरे मिलता है
हर ज़ख़्म का मरहम भी हर दर्द का दरमाँ भी

लेती है जब अंगड़ाई बेदार किरन कोई
होता है 'ज़िया' ख़ुद ही रक़्साँ भी ग़ज़ल-ख़्वाँ भी