गिरते शीश-महल देखोगे
आज नहीं तो कल देखोगे
इस दुनिया में नया तमाशा
हर साअत हर पल देखोगे
किस किस तुर्बत पर रोओगे
किस किस का मक़्तल देखोगे
देर है पहली बूँद की सारी
फिर हर-सू जल-थल देखोगे
हर हर ज़ख़्म-ए-शजर से 'ख़ावर'
फूटती इक कोंपल देखोगे

ग़ज़ल
गिरते शीश-महल देखोगे
ख़ावर रिज़वी