गिर के क़दमों पे सर-ए-बज़्म तड़पना देखा
मरने वाले का मिरी जान तमाशा देखा
इक जहाँ तेरा तमाशाई है सब को है ख़बर
आईना देख के मुझ को ये बता क्या देखा
खोल कर नामा मिरा उस ने पढ़ा भी कि नहीं
नामा-बर मेरी तरफ़ से उसे कैसा देखा
दिल जिसे कहते हैं पहलू में कभी वो होगा
हम ने तो दिल की जगह दाग़-ए-तमन्ना देखा
कौन कहता है कि शोहरत तिरे आशिक़ की नहीं
उस को तो कूचा-ओ-बाज़ार में रुस्वा देखा
आईना-ख़ाने में निकला न कोई तेरा जवाब
यही कहता था मोहब्बत का तक़ाज़ा देखा
तुम तो मसरूफ़ रहे हुस्न की आराइश में
हम ने आईने में कल इक सितम-आरा देखा
जल गया तूर गिरे हज़रत-ए-मूसा ग़श में
क्या कलेजा था कि जिस ने तिरा जल्वा देखा
इश्क़ की ये भी करामत है अगर तुम समझो
तुम ने अपना मिरी आँखों में समाना देखा
टिकटिकी बाँधे हुए देख रहा था तुम को
तुम ने 'शंकर' का भी महफ़िल में तमाशा देखा
ग़ज़ल
गिर के क़दमों पे सर-ए-बज़्म तड़पना देखा
शंकर लाल शंकर