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गिले शिकवे के दफ़्तर आ गए तुम | शाही शायरी
gile shikwe ke daftar aa gae tum

ग़ज़ल

गिले शिकवे के दफ़्तर आ गए तुम

वजीह सानी

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गिले शिकवे के दफ़्तर आ गए तुम
अरे 'सानी' कहाँ घर आ गए तुम

कहानी ख़त्म होने जा रही थी
नया इक मोड़ ले कर आ गए तुम

हँसी में टालने ही जा रहा था
मिरी आँखों में क्यूँ भर आ गए तुम

ज़माना ताक में बैठा हुआ था
ज़माने भर से बच कर आ गए तुम

मैं जी लूँगा इसी इक पल में जीवन
कि जिस पल में मयस्सर आ गए तुम

मिरे सीने पे अपना बोझ रखना
अगर बाँहों में थक कर आ गए तुम

दुआ में हाथ थकते जा रहे थे
अभी गिरते कि यकसर आ गए तुम

हमारा ज़र्फ़ था सो चुप रहे हम
मगर आपे से बाहर आ गए तुम

बसा-औक़ात तुम को भूल रखा
मगर यादों में अक्सर आ गए तुम

अभी तुम से ही मिलने आ रहा था
चलो अच्छा हुआ गर आ गए तुम

मोहब्बत की वकालत कर रहे हो
तो क्या 'सानी' से मिल कर आ गए तुम