घूम-फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे
दिल से निकले भी अगर हम तो कहाँ जाएँगे
हम को मालूम था ये वक़्त भी आ जाएगा
हाँ मगर ये नहीं सोचा था कि पछताएँगे
ये भी तय है कि जो बोएँगे वो काटेंगे यहाँ
और ये भी कि जो खोएँगे वही पाएँगे
कभी फ़ुर्सत से मिलो तो तुम्हें तफ़्सील के साथ
इम्तियाज़-ए-हवस-ओ-इश्क़ भी समझाएँगे
कह चुके हम हमें इतना ही फ़क़त कहना था
आप फ़रमाइए कुछ आप भी फ़रमाएँगे
एक दिन ख़ुद को नज़र आएँगे हम भी 'अजमल'
एक दिन अपनी ही आवाज़ से टकराएँगे
ग़ज़ल
घूम-फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे
अजमल सिराज