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घुस घुसा कर सही रवाँ तो है | शाही शायरी
ghus ghusa kar sahi rawan to hai

ग़ज़ल

घुस घुसा कर सही रवाँ तो है

मुज़दम ख़ान

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घुस घुसा कर सही रवाँ तो है
दिल बुढ़ापे में भी जवाँ तो है

गो मज़ामीं नहीं हमारे पास
शायरी के लिए ज़बाँ तो है

राज़ तो ना हुआ जो बतला दूँ
वर्ना तू अच्छा राज़-दाँ तो है

ग़ुस्से में इश्क़ को कहा गाली
और तू कह रही है हाँ तो है

तेरी तस्वीर खींचने के बअ'द
कैमरा ज़ेब-ए-दास्ताँ तो है

अक़्ल रहती है ग़म जहाँ सब की
वो भी आख़िर कोई जहाँ तो है

हो सियासी या चाहे जज़्बाती
सामईं के लिए बयाँ तो है

छोड़ कर जाने का हो फ़ाएदा क्या
मेरी सोचों में कारवाँ तो है

कुछ ख़रीदारी के लिए 'मुज़दम'
ख़्वाब में है मगर दुकाँ तो है