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घटाओं की उदासी पी रहा हूँ | शाही शायरी
ghaTaon ki udasi pi raha hun

ग़ज़ल

घटाओं की उदासी पी रहा हूँ

कफ़ील आज़र अमरोहवी

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घटाओं की उदासी पी रहा हूँ
मैं इक गहरा समुंदर बन गया हूँ

तिरी यादों के अँगारों को अक्सर
तसव्वुर के लबों से चूमता हूँ

कोई पहचानने वाला नहीं है
भरे बाज़ार में तन्हा खड़ा हूँ

मिरा क़द कितना ऊँचा हो गया है
फ़लक की वुसअतों को नापता हूँ

वो यूँ मुझ को भुलाना चाहते हैं
कि जैसे मैं भी कोई हादिसा हूँ

बदलते मौसमों की डाइरी से
तिरे बारे में अक्सर पूछता हूँ

मिरे कमरे में यादें सो रही हैं
मैं सड़कों पर भटकता फिर रहा हूँ

उभरते डूबते सूरज का मंज़र
बसों की खिड़कियों से देखता हूँ

किसी की याद के पत्तों को 'आज़र'
हवाओं से बचा कर रख रहा हूँ