EN اردو
घर से निकले देर हुई है घर को लौट चलें | शाही शायरी
ghar se nikle der hui hai ghar ko lauT chalen

ग़ज़ल

घर से निकले देर हुई है घर को लौट चलें

ज़ाहिद हसन चुग़ताई

;

घर से निकले देर हुई है घर को लौट चलें
गूँगी रातें धूप कड़ी है घर को लौट चलें

दूर से तेरे मीत आए हैं तुझ से रीत निभाने
रौज़न पर ज़ंजीर पड़ी है घर को लौट चलें

धीमे धीमे आँचल वाली आज भी आस लगाए
दरवाज़े पर आन खड़ी है घर को लौट चलें

बस्ती बस्ती चर्चा जिन का सुनते सुनते आए
शहर में आ कर बात खुली है घर को लौट चलें

कल 'चुग़ताई' हम वहशी थे आज भी हम दीवाने
कब से अपनी आस लगी है घर को लौट चलें