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घर से निकल के आए हैं बाज़ार के लिए | शाही शायरी
ghar se nikal ke aae hain bazar ke liye

ग़ज़ल

घर से निकल के आए हैं बाज़ार के लिए

रसूल साक़ी

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घर से निकल के आए हैं बाज़ार के लिए
ये भीड़-भाड़ अच्छी है बे-कार के लिए

हम यार के लिए हैं न दीदार के लिए
टैरिस पे आ के बैठे हैं अख़बार के लिए

दिल-जूई कर रहा है बहुत देर से तबीब
क्या आख़िरी दवा है ये बीमार के लिए

मैं ने तो इस दयार में सब कुछ लुटा दिया
दुनिया सफ़र पे जाती है घर-बार के लिए

मेरे दिल-ए-तबाह में इतनी जगह कहाँ
उस ने जगह निकाली है दीवार के लिए

तुम ने तो माना जुर्म का इक़रार कर लिया
लेकिन मुझे सज़ा मिली इंकार के लिए

ऐ माह-रू उमीद की कोई किरन तो हो
हम जैसे तीरगी के गिरफ़्तार के लिए

ऐसा नहीं कि शहर में आसानियाँ न हूँ
लेकिन वो सब हैं लम्हा-ए-दुश्वार के लिए