घर से बाहर निकल कर
दुनिया को भी देखा कर
फ़सलें काट बुराई की
अच्छाई को बोया कर
नेकी डाल के दरिया में
अपने आप से धोका कर
सब को पढ़ता रहता है
अपने आप को समझा कर
बूढे बरगद के नीचे
दिल टूटे तो बैठा कर
महफ़िल महफ़िल हँसता है
तन्हाई में रोया कर
दुनिया पीछे आएगी
देख तो दुनिया ठुकरा कर
पढ़ के सब कुछ सीखेगा
देख के भी कुछ सीखा कर
दुश्मन हों या दोस्त 'अज़ीज़'
सब को अपना समझा कर

ग़ज़ल
घर से बाहर निकल कर
अज़ीज़ अन्सारी