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घर की मुश्किल कोई हल चाहती है | शाही शायरी
ghar ki mushkil koi hal chahti hai

ग़ज़ल

घर की मुश्किल कोई हल चाहती है

फ़े सीन एजाज़

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घर की मुश्किल कोई हल चाहती है
मुझ से वो ताज-महल चाहती है

कैसी नादान है दुनिया की तलब
बीज बोया नहीं फल चाहती है

इंतिज़ार आश्ना आँखों की जलन
तेरी आँखों के कँवल चाहती है

फ़िक्र है सुब्ह की दुश्मन कैसी
रात की रात ग़ज़ल चाहती है

बैठ जा सामने इक नाज़ के साथ
तू मुसव्विर का अमल चाहती है

जिस में हर चेहरे के टुकड़े हो जाएँ
आँख वो शीश-महल चाहती है