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घर के अंदर भोली-भाली सूरतें अच्छी लगीं | शाही शायरी
ghar ke andar bholi-bhaali suraten achchhi lagin

ग़ज़ल

घर के अंदर भोली-भाली सूरतें अच्छी लगीं

ओबैदुर् रहमान

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घर के अंदर भोली-भाली सूरतें अच्छी लगीं
मुस्कुराती गुल खिलाती रौनक़ें अच्छी लगीं

जब सिसकती रेंगती सी ज़िंदगी देखी कहीं
फिर ख़ुदा की दी हुई सब नेमतें अच्छी लगीं

एक दिल से दूसरे दिल तक सफ़र करते रहे
रहगुज़ार-ए-शौक़ में ये हिजरतें अच्छी लगीं

धूप के लम्बे सफ़र से लौट के आए जो घर
बंद कमरे में सुकूँ की साअतें अच्छी लगीं

दिल की दुनिया हसरतों के दम से ही आबाद है
गाहे गाहे हम को अपनी हसरतें अच्छी लगीं

जिन घरों में अज़्मत-ए-रफ़्ता के रौशन थे चराग़
उन के बाम-ओ-दर हमें उन की छतें अच्छी लगीं

ऐब अपने चेहरे का किस को नज़र आया 'उबैद'
आइने में सब को अपनी सूरतें अच्छी लगीं