गेसू से अंबरी है सबा और सबा से हम
महकी हुई है आज हवा और हवा से हम
शोख़ी से एक जा तुझे दम भर नहीं क़रार
बेचैन तुझ से तेरी अदा और अदा से हम
आराइशों से कुश्तन-ए-आशिक़ मुराद है
होती है पाएमाल हिना और हिना से हम
हम से विसाल में भी हुए वो न बे-हिजाब
लिपटी रही बदन से रिदा और रिदा से हम
किस मुँह से हाथ उठाएँ फ़लक की तरफ़ 'ज़हीर'
मायूस है असर से दुआ और दुआ से हम
ग़ज़ल
गेसू से अंबरी है सबा और सबा से हम
ज़हीर देहलवी