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गेसू-ए-यार को चेहरे पे बिखरता देखा | शाही शायरी
gesu-e-yar ko chehre pe bikharta dekha

ग़ज़ल

गेसू-ए-यार को चेहरे पे बिखरता देखा

मजीद मैमन

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गेसू-ए-यार को चेहरे पे बिखरता देखा
मो'जिज़ा देखिए दिन रात को यकजा देखा

यूँ शब-ए-हिज्र में उन को भी तड़पता देखा
बिस्तर-ए-मर्ग पे गोया कि मसीहा देखा

ख़ुद को भी हुस्न का दीवाना समझ बैठा है
उस परी-चेहरा का वाइ'ज़ ने जो शीशा देखा

कश्मकश क़तरा-ए-आँसू की तिरी पलकों पर
हम ने गिरते हुए तारे को लरज़ता देखा

फिर वही याद-ए-गुज़िश्ता वही उलझन वही ग़म
दिल को उन बादा-ओ-साग़र से भी बहला देखा