गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर
Your lustrous tresses my dear Lord further illuminate
The power of my senses, heart and consciousness negate
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
Love too is now clandestine, and beauty too is veiled
You, either should reveal me or, should come in open state
तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर
You are a mighty ocean, I, a droplet of no size
Either make me, too, immense or then assimilate
मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ मेरे गुहर की आबरू
मैं हूँ ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर
If I an oyster be, my pearl's dignity's with thee
A pearl of regal lustre, if a grain of sand, create
नग़्मा-ए-नौ-बहार अगर मेरे नसीब में न हो
उस दम-ए-नीम-सोज़ को ताइरक-ए-बहार कर
Turn this fleeting moment to a day of joyous spring
If melodies of spring are not ordained to be my fate
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
Why did you bid me leave from paradise for now
My work is yet unfinished here so you wil have to wait
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
आप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर
On the day of reckoning when, you behold my slate
You will shame me and yourself you will humiliate
ग़ज़ल
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
अल्लामा इक़बाल