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ग़ज़ल में दर्द के एहसास को जगाए बग़ैर | शाही शायरी
ghazal mein dard ke ehsas ko jagae baghair

ग़ज़ल

ग़ज़ल में दर्द के एहसास को जगाए बग़ैर

अशोक मिज़ाज बद्र

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ग़ज़ल में दर्द के एहसास को जगाए बग़ैर
हुनर में आता नहीं दिल पे चोट खाए बग़ैर

तलाश करता हुआ फिर रहा हूँ बरसों से
कहाँ गया मिरा बचपन मुझे बताए बग़ैर

न जाने कौन सी दुनिया में लोग जीते हैं
ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया कोई बसाए बग़ैर

कई सितारे बड़े बद-नसीब होते हैं
वो डूब जाते हैं पलकों पे झिलमिलाए बग़ैर

मुझे ग़ज़ल भी मिरी दादी-माँ सी लगती है
नहीं सुलाती कहानी कोई सुनाए बग़ैर