ग़ज़ल का हुस्न है और गीत का शबाब है वो 
नशा है जिस में सुख़न का वही शराब है वो 
उसे न देख महकता हुआ गुलाब है वो 
न जाने कितनी निगाहों का इंतिख़ाब है वो 
मिसाल मिल न सकी काएनात में उस की 
जवाब उस का नहीं कोई ला-जवाब है वो 
मिरी इन आँखों को ताबीर मिल नहीं पाती 
जिसे मैं देखता रहता हूँ ऐसा ख़्वाब है वो 
न जाने कितने हिजाबों में वो छुपा है मगर 
निगाह-ए-दिल से जो देखूँ तो बे-हिजाब है वो 
उजाले अपने लुटा कर वो डूब जाएगा 
हसीन सुब्ह का रख़्शंदा आफ़्ताब है वो 
वो मुझ से पूछने आया है मेरा हाल 'अफ़ज़ल' 
जिसे बता न सकूँ दिल में इज़्तिराब है वो
        ग़ज़ल
ग़ज़ल का हुस्न है और गीत का शबाब है वो
अफ़ज़ल इलाहाबादी

