EN اردو
गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो | शाही शायरी
gawah-e-wasl-e-adu sar jhuka ke dekh na lo

ग़ज़ल

गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो

मुज़्तर ख़ैराबादी

;

गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो
ये बंद बंद जुदा हैं क़बा के देख न लो

किसी के इश्क़ में तकलीफ़ कुछ नहीं होती
किसी से चार-घड़ी दिल लगा के देख न लो

दिल-ओ-जिगर का तड़पना हमारी बेताबी
जो देखना है तो सूरत दिखा के देख न लो

हमारी आह का क्या देखना जो देखोगे
वही तो बात है झोंके हवा के देख न लो

अगर मोहब्बत-ए-'मुज़्तर' के तुम नहीं क़ाइल
तो एक काम करो आज़मा के देख न लो