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गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह | शाही शायरी
gardish-e-sayyargan KHub hai apni jagah

ग़ज़ल

गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह

सरवत हुसैन

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गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह
और ये अपना मकाँ ख़ूब है अपनी जगह

ऐ दिल-ए-आशुफ़्ता-सर रात अँधेरी है पर
रक़्स तिरा शम्अ-साँ ख़ूब है अपनी जगह

काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा तेरी हिकायत ही क्या
फिर भी तमाशा-ए-जाँ ख़ूब है अपनी जगह

हिज्र-नज़ादों का है एक अलग ही जहाँ
उस से न मिलना यहाँ ख़ूब है अपनी जगह

सैर-ए-बयाबाँ-ओ-दर उक़्दा-कुशा नीज़
रंज-ए-मसाफ़त मियाँ ख़ूब है अपनी जगह

चेहरा-ए-बिल्क़ीस पर आँख ठहरती नहीं
सुब्ह-ए-यमन का समाँ ख़ूब है अपनी जगह