गर्दिश-ए-दौराँ से यहाँ किस को फ़राग़ आया है हाथ
हाँ मगर आया तो इक हसरत का दाग़ आया है हाथ
नौहा-संजी की भी मोहलत अंदलीबों में नहीं
बाग़बाँ क़िस्मत से क्या है बे-दिमाग़ आया है हाथ
उम्र गुज़री जुस्तजू-ए-कूचा-ए-दिल-दार में
वाए-नाकामी पस-अज़-मुर्दन सुराग़ आया है हाथ
दिल के दाग़ों ने किया हम को चमन से बे-नियाज़
मन्नतें मानी हैं बरसों तब ये बाग़ आया है हाथ
दाग़ दिल पर नाला लब पर चश्म गिर्यां सीना रीश
'आशिक़'-ए-शोरीदा को किस दम फ़राग़ आया है हाथ
ग़ज़ल
गर्दिश-ए-दौराँ से यहाँ किस को फ़राग़ आया है हाथ
आशिक़ अकबराबादी