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गर्दिश-ए-दौराँ से यहाँ किस को फ़राग़ आया है हाथ | शाही शायरी
gardish-e-dauran se yahan kis ko faragh aaya hai hath

ग़ज़ल

गर्दिश-ए-दौराँ से यहाँ किस को फ़राग़ आया है हाथ

आशिक़ अकबराबादी

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गर्दिश-ए-दौराँ से यहाँ किस को फ़राग़ आया है हाथ
हाँ मगर आया तो इक हसरत का दाग़ आया है हाथ

नौहा-संजी की भी मोहलत अंदलीबों में नहीं
बाग़बाँ क़िस्मत से क्या है बे-दिमाग़ आया है हाथ

उम्र गुज़री जुस्तजू-ए-कूचा-ए-दिल-दार में
वाए-नाकामी पस-अज़-मुर्दन सुराग़ आया है हाथ

दिल के दाग़ों ने किया हम को चमन से बे-नियाज़
मन्नतें मानी हैं बरसों तब ये बाग़ आया है हाथ

दाग़ दिल पर नाला लब पर चश्म गिर्यां सीना रीश
'आशिक़'-ए-शोरीदा को किस दम फ़राग़ आया है हाथ