गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम
दिल बहुत उदास है कि रो न पाए हम
वजूद के चहार सम्त रेगज़ार था
कहीं भी ख़्वाहिशों के बीज बो न पाए हम
रूह से तो पहले दिन ही हार मान ली
बोझ अपने जिस्म का भी ढो न पाए हम
दश्त में तो एक हम थे और कुछ न था
शहर के हुजूम में भी खो न पाए हम
एक ख़्वाब देखने की आरज़ू रही
इसी लिए तमाम उम्र सो न पाए हम
ग़ज़ल
गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम
शहरयार