गर्द-ए-सफ़र में राह ने देखा नहीं मुझे
इक उम्र महर ओ माह ने देखा नहीं मुझे
अच्छा हुआ कि ख़ाक-नशीनों के रू-ब-रू
उस शहर-ए-कज-कुलाह ने देखा नहीं मुझे
मैं देखता था रंग बदलती हुई निगाह
बदली हुई निगाह ने देखा नहीं मुझे
मेरी सदा वहाँ पे तुझे कैसे ढूँडती
तेरी जहाँ पनाह ने देखा नहीं मुझे
हर मौज-ए-दर्द ख़ुद मैं उतारे चला गया
'साहिल' दिल-ए-तबाह ने देखा नहीं मुझे
ग़ज़ल
गर्द-ए-सफ़र में राह ने देखा नहीं मुझे
ज़ीशान साहिल