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गरचे सहल नहीं लेकिन तेरे कहने पर लाऊँगा | शाही शायरी
garche sahl nahin lekin tere kahne par launga

ग़ज़ल

गरचे सहल नहीं लेकिन तेरे कहने पर लाऊँगा

सादिक़

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गरचे सहल नहीं लेकिन तेरे कहने पर लाऊँगा
काट के अपने हाथों में अब अपना ही सर लाऊँगा

जिस में हों तय्यार खड़ी हर सम्त सराबों की फ़सलें
अपने कंधों पर वो रेगिस्तान उठा कर लाऊँगा

क़ौस-ए-क़ुज़ह के रंगों से तय्यार करूँगा नक़्श नया
रह जाओ अंगुश्त-ब-दंदाँ ऐसा मंज़र लाऊँगा

उन की याद में बहते आँसू ख़ुश्क अगर हो जाएँगे
सात समुंदर अपनी ख़ाली आँखों में भर लाऊँगा

जा पहुँचूँगा तख़्त-ए-मुअल्ला तक अपनी फ़रियाद लिए
दस्त-ए-ख़ास से लिखवा कर इक नया मुक़द्दर लाऊँगा