गरचे गुल की सेज हो तिस पर भी उड़ जाती है नींद
सर रखूँ क़दमों पे जब तेरे मुझे आती है नींद
देख सकता ही नहीं आँखों से टुक आँखें मिला
मुंतज़िर से मिस्ल-ए-नर्गिस तेरे शरमाती है नींद
जब से ये मिज़्गाँ हुए दर पर तिरे जारूब-कश
रू-ब-रू तब से मिरी आँखों के टल जाती है नींद
ध्यान में गुल-रू के चैन आता नहीं अफ़्साना-गर
ले सबा से गाह बू-ए-यार बहलाती है नींद
अश्क तो इतने बहे 'चंदा' कि चश्म-ए-ख़ल्क़ से
क़ुर्रत-उल-ऐन-ए-अली के ग़म में बह जाती है नींद
ग़ज़ल
गरचे गुल की सेज हो तिस पर भी उड़ जाती है नींद
मह लक़ा चंदा