गरचे दिल में ही सदा जान-ए-जहाँ रहते हो
पर ब-ज़ाहिर नहीं मालूम कहाँ रहते हो
शुक्र-लिल्लाह कि अभी काम तुम्हें बाक़ी है
ले चुके दिल तो वले दरपा-ए-जाँ रहते हो
आ निकलते हो किधर भूल के बे-ख़्वाहिश-ए-दिल
अब भी जाओ वहीं हर रोज़ जहाँ रहते हो
ऐ ख़ुश-अबरू कोई फिर ढब पे चढ़ा ताज़ा शिकार
यूँ जो हर वक़्त लिए तीर-ओ-कमाँ रहते हो
गर कभी आए 'असर' पास हुए वोहीं उदास
ख़ुश शब-ओ-रोज़ पड़े औरों के हाँ रहते हो
ग़ज़ल
गरचे दिल में ही सदा जान-ए-जहाँ रहते हो
मीर असर