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गरचे दिल में ही सदा जान-ए-जहाँ रहते हो | शाही शायरी
garche dil mein hi sada jaan-e-jahan rahte ho

ग़ज़ल

गरचे दिल में ही सदा जान-ए-जहाँ रहते हो

मीर असर

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गरचे दिल में ही सदा जान-ए-जहाँ रहते हो
पर ब-ज़ाहिर नहीं मालूम कहाँ रहते हो

शुक्र-लिल्लाह कि अभी काम तुम्हें बाक़ी है
ले चुके दिल तो वले दरपा-ए-जाँ रहते हो

आ निकलते हो किधर भूल के बे-ख़्वाहिश-ए-दिल
अब भी जाओ वहीं हर रोज़ जहाँ रहते हो

ऐ ख़ुश-अबरू कोई फिर ढब पे चढ़ा ताज़ा शिकार
यूँ जो हर वक़्त लिए तीर-ओ-कमाँ रहते हो

गर कभी आए 'असर' पास हुए वोहीं उदास
ख़ुश शब-ओ-रोज़ पड़े औरों के हाँ रहते हो