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ग़रज़ किसी से न ऐ दोस्तो कभू रखियो | शाही शायरी
gharaz kisi se na ai dosto kabhu rakhiyo

ग़ज़ल

ग़रज़ किसी से न ऐ दोस्तो कभू रखियो

कलीम आजिज़

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ग़रज़ किसी से न ऐ दोस्तो कभू रखियो
बस अपने हाथ यहाँ अपनी अबरू रखियो

ज़माना संग सही आइने सी ख़ू रखियो
जो दिल में रखियो वही सब के रू-ब-रू रखियो

न जाने कौन उसे तोड़ फोड़ कर रख दे
बहुत सँभाल के इस बज़्म में सुबू रखियो

उड़ा न दीजिए सब ग़म की रंग-रलियों में
बचा के दिल के पियाले में कुछ लहू रखियो

यही बचाएगी शमशीर-ए-वक़्त से 'आजिज़'
हमारी बात क़रीब-ए-रग-ए-गुलू रखियो