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गर उस का सिलसिला भी उम्र-ए-जावेदाँ से मिले | शाही शायरी
gar us ka silsila bhi umr-e-jawedan se mile

ग़ज़ल

गर उस का सिलसिला भी उम्र-ए-जावेदाँ से मिले

हफ़ीज़ होशियारपुरी

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गर उस का सिलसिला भी उम्र-ए-जावेदाँ से मिले
किसी को ख़ाक सुकूँ मर्ग-ए-ना-गहाँ से मिले

कोई ज़मीं से भी पहुँचाए आसमाँ को पयाम
पयाम अहल-ए-ज़मीं को तो आसमाँ से मिले

ख़ुद अपनी गुम-शुदगी से जिन्हें शिकायत है
तू ही बता उन्हें तेरा निशाँ कहाँ से मिले

सुराग़-ए-उम्र-ए-गुज़िश्ता मिले कहीं से 'हफ़ीज़'
सुराग़-ए-उम्र-ए-गुज़िश्ता मगर कहाँ से मिले