गर उन्हें है अपनी सूरत पर घमंड
हम को है अपनी मोहब्बत पर घमंड
मेरे उन के फिर भला क्यूँ-कर बने
ख़त्म है दोनों की ख़सलत पर घमंड
क्या नहीं देखी बुलंदी आह की
क्यूँ फ़लक करता है रिफ़अत पर घमंड
काम क़ारूँ के न आया माल-ओ-ज़र
मुनइमो बेजा है दौलत पर घमंड
बादशाह-ए-हफ़्त-किशवर है तो क्या
कर न दो दिन की हुकूमत पर घमंड
देख कर आईना मुझ को दंग है
मुझ को भी है अपनी हैरत पर घमंड
उन को अपनी सुब्ह-ए-महशर पर है नाज़
हम को अपनी शाम-ए-फ़ुर्क़त पर घमंड
छुप-छुपा कर देख भी लेंगे तुम्हें
हम को भी है अपनी जुरअत पर घमंड
कुछ नहीं कर सकता 'अंजुम' आप का
आसमाँ को है जो हसरत पर घमंड
ग़ज़ल
गर उन्हें है अपनी सूरत पर घमंड
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम