गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
दिलदार तू हुआ तो दिल-आज़ार कौन है
नालाँ हूँ मुद्दतों से तिरे साए के तले
पूछा न ये कभू पस-ए-दीवार कौन है
हर शब शराब-ख़्वार हर इक दिन सियाह है
आशुफ़्ता ज़ुल्फ़ ओ लटपटी दस्तार कौन है
हर आन देखता हूँ मैं अपने सनम को शैख़
तेरे ख़ुदा का तालिब-ए-दीदार कौन है
'सौदा' को जुर्म-ए-इश्क़ से करते हैं आज क़त्ल
पहचानता है तू ये गुनहगार कौन है
ग़ज़ल
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
मोहम्मद रफ़ी सौदा