गर कहीं उस को जल्वा-गर देखा
न गया हम से आँख भर देखा
नाला हर चंद हम ने गर देखा
आह अब तक न कुछ असर देखा
आज क्या जी में आ गया तेरे
मुतबस्सिम हो जो इधर देखा
आईने को तो मुँह दिखाते हो
क्या हुआ हम ने भी अगर देखा
दिल-रुबा और भी हैं पर ज़ालिम
कोई तुझ सा न मुफ़्त पर देखा
और भी संग-दिल हुआ वो शोख़
तेरा ऐ आह बस असर देखा
मिन्नत ओ आजिज़ी ओ ज़ारी ओ आह
तेरे आगे हज़ार कर देखा
तो भी तू ने न ऐ मह-बे-मेहर
नज़र-ए-रहम से इधर देखा
सच है 'बेदार' वो है आफ़त-ए-जान
हम ने भी क़िस्सा-मुख़्तसर देखा
ग़ज़ल
गर कहीं उस को जल्वा-गर देखा
मीर मोहम्मदी बेदार