गर हो न ख़फ़ा तो कह दूँ जी की
इस दम तुम्हें याद है किसी की
जो सामने हो कहे उसी की
मुँह देखी है बात आरसी की
फूलों का कभी न हार पहना
बध्धी जो पड़ी तिरी छड़ी की
गुल-गीर ने काट कर सर-ए-शम्अ'
परवाने से शब कटी जली की
तस्बीह में भी हो तार-ए-ज़ुन्नार
ख़ातिर न शिकस्ता कर किसी की
आया शब-ए-मह में वो जो ता-फ़र्श
चादर हुई गर्द चाँदनी की
सय्याद कभी तू ज़ब्ह कर डाल
मुड़ जाएगी बाड़ क्या छुरी की
आईना बर्क़ में है लाज़िम
तस्वीर खींचे तिरी हँसी की
तरतीब-ए-कुहन की वज़्अ' ऐ 'अर्श'
हम ने दीवान में नई की
ग़ज़ल
गर हो न ख़फ़ा तो कह दूँ जी की
मीर कल्लू अर्श