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ग़मगीं हैं दिल-फ़िगार हैं मेरे यहाँ के लोग | शाही शायरी
ghamgin hain dil-figar hain mere yahan ke log

ग़ज़ल

ग़मगीं हैं दिल-फ़िगार हैं मेरे यहाँ के लोग

ओवेस अहमद दौराँ

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ग़मगीं हैं दिल-फ़िगार हैं मेरे यहाँ के लोग
दामान-ए-तार-तार हैं मेरे यहाँ के लोग

पैदा किया है झूटे मसीहाओं ने जिसे
उस दर्द के शिकार हैं मेरे यहाँ के लोग

क्या जानिए हैं कब से जिगर सोख़्ता मगर
इंसाँ के ग़म-गुसार हैं मेरे यहाँ के लोग

गर्दन अगरचे ख़म है इताअत के बोझ से
लेकिन हरीफ़-ए-दार हैं मेरे यहाँ के लोग

'दौराँ' इन्ही के ज़ख़्म से फूटेगी रौशनी
माना कि सोगवार हैं मेरे यहाँ के लोग