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ग़म-ज़दा मैं भी नहीं और ग़मीं तू भी नहीं | शाही शायरी
gham-zada main bhi nahin aur ghamin tu bhi nahin

ग़ज़ल

ग़म-ज़दा मैं भी नहीं और ग़मीं तू भी नहीं

हादिस सलसाल

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ग़म-ज़दा मैं भी नहीं और ग़मीं तू भी नहीं
अब तो पाबंद-ए-वफ़ा मैं भी नहीं तू भी नहीं

मैं भी उफ़तादा-ए-अंदाज़-ए-तमन्ना-ए-हयात
या'नी दोशीज़ा-ए-फ़िर्दोस-ए-बरीं तू भी नहीं

ऐ शफ़क़-ख़ेज़ी-ए-इज्माल-ए-सहर, सद-अफ़्सोस
अक्स-ए-तारीकी-ए-शब-हा-ए-हज़ीं तू भी नहीं

मैं कि हमज़ाद-ए-नशीनान-ए-हरीम-ए-ख़स्ता
हाए काशाना-ए-बे-ख़स का मकीं तू भी नहीं

ज़ीनत-ए-साया-ए-दीवार-ए-मकाँ मेरा गुमाँ
और कोई भी नहीं साया-नशीं तू भी नहीं

रूह-ए-पज़-मुर्दा-ए-तख़य्युल लब-ओ-मुसहफ़-ए-नाज़
इस उदासी का सबब मेरे तईं तू भी नहीं

फ़ितरत-ए-गर्दिश-ए-आलाम-ए-तग़य्युर से वरा
ख़ूगर-ए-ऐश मगर मैं भी नहीं तू भी नहीं