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ग़म-ज़दा हम हैं ये कहना छोड़ दो | शाही शायरी
gham-zada hum hain ye kahna chhoD do

ग़ज़ल

ग़म-ज़दा हम हैं ये कहना छोड़ दो

कविता किरन

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ग़म-ज़दा हम हैं ये कहना छोड़ दो
या हमारे साथ रहना छोड़ दो

चाहिए गर ज़िंदगानी का मज़ा
वक़्त की लहरों में बहना छोड़ दो

शक करेंगे लोग अश्कों पर मिरे
इस तरह आँखों में रहना छोड़ दो

ज़ब्त-ए-ग़म अच्छी अलामत है मगर
फिर भी तन्हाई में रहना छोड़ दो

जितनी मिल जाए ख़ुशी लेते रहो
ग़म अगर मुश्किल है सहना छोड़ दो

दुश्मनों से कर लो समझौता 'किरन'
दोस्तों का ज़ुल्म सहना छोड़ दो