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ग़म सहें या ख़ुशी को प्यार करें | शाही शायरी
gham sahen ya KHushi ko pyar karen

ग़ज़ल

ग़म सहें या ख़ुशी को प्यार करें

अंजुम सिद्दीक़ी

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ग़म सहें या ख़ुशी को प्यार करें
कौन सी चीज़ इख़्तियार करें

हम ब-क़ैद-ए-क़फ़स चमन से दूर
कैसे अंदाज़ा-ए-बहार करें

फ़स्ल-ए-गुल आ गई है अहल-ए-जुनूँ
फिर गरेबाँ को तार तार करें

काली काली घटा में छाई हैं
आइए ज़िक्र-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार करें

दिल दिया है तो उन के क़दमों पर
ज़िंदगानी को भी निसार करें

जिस में शामिल हों सब रईस-ओ-ग़रीब
ऐसी महफ़िल को बा-वक़ार करें

अंजुमन तब कहें जब 'अंजुम' को
आप अपना शरीक-ए-कार करें