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ग़म-क़िर्तास पे अपने कर्ब की बातें लिखते रहना | शाही शायरी
gham-qirtas pe apne karb ki baaten likhte rahna

ग़ज़ल

ग़म-क़िर्तास पे अपने कर्ब की बातें लिखते रहना

क़य्यूम ताहिर

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ग़म-क़िर्तास पे अपने कर्ब की बातें लिखते रहना
हिज्र-किताब को पढ़ते रहना शरहें लिखते रहना

फिर यूँ होगा इक गुम-गश्ता चेहरा सामने होगा
ख़्वाबों की दीवार बनाना आँखें लिखते रहना

इतना करना अपनी सोच की आन न बिकने देता
दिन की दिन ही और रातों को रातें लिखते रहना

ऐसा वक़्त न आने देना सूखें सोच-समुंदर
लहरों से आवाज़ मिलाना मौजें लिखते रहना

बाहर के इस शोर में तेरी बातें दब जाएँ तो
अंदर से जो आती हैं आवाज़ें लिखते रहना

'ताहिर'! उन बे-बस लम्हों का अहद निभाना होगा
उस ने कहा था ख़त मत लिखना ग़ज़लें लिखते रहना