ग़म ओ नशात की हर रहगुज़र में तन्हा हूँ
मुझे ख़बर है मैं अपने सफ़र में तन्हा हूँ
मुझी पे संग-ए-मलामत की बारिशें होंगी
कि इस दयार में शोरीदा-सर में तन्हा हूँ
तिरे ख़याल के जुगनू भी साथ छोड़ गए
उदास रात के सूने खंडर में तन्हा हूँ
गिराँ नहीं है किसी पर ये रात मेरे सिवा
कि मुब्तिला मैं उम्मीद-ए-सहर में तन्हा हूँ
न छोड़ साथ मिरा इन अकेली राहों में
दिल-ए-ख़राब तिरा हम-सफ़र मैं तन्हा हूँ
वो बे-नियाज़ कि देखी हो जैसे इक दुनिया
मुझे ये नाज़ मैं उस की नज़र में तन्हा हूँ
मुझी से क्यूँ है ख़फ़ा मेरा आईना 'मख़मूर'
इस अंधे शहर में क्या ख़ुद-निगर मैं तन्हा हूँ
ग़ज़ल
ग़म ओ नशात की हर रहगुज़र में तन्हा हूँ
मख़मूर सईदी